माँ
(प्रस्तुति : दिव्या तनेजा)
जीवन के हर आधार को संभालने वाली। मेरे दुःख दर्द को मिटने वाली। जीवन में हर संघर्ष में मेरा साथ निभाने वाली। जिसकी आँचल में सिर रखने से सब दुःख मिट जाता था उसी दुःख को मिटाने वाली। एक सख्स जिसने मुझे जिंदगी का मतलब समझाया, यह कविता उसके नाम
जीवन की हर कठिन घड़ी में मेरी माँ का साथ रहा
मेरी हर मुसकान या दुख मे सर पर माँ का हाथ रहा
सर्व प्रथम नन्ही आंखों से माँ की सूरत देखी थी
इस माया नगरी मैंने पहली मूरत देखी थी
चलना सीखा तो हाथों मे माँ का आंचल रहता था
मेरी माँ की आँखों में ममता का झरना बहता था
उसके शीतल आंचल में जब आंखें मूंद के सोता था
मुझको घेरे ममता का कवच होता था
उसके आंचल का अमृत पीकर जब मै कुछ बड़ा हुआ
आगे कदम उठाने की खातिर जब उठ कर खड़ा हुआ
तब भी उसका हाथ मेरी उंगली को थामे रहता था
चलते चलते गिर ना जाऊं मन मे यह डर हमेशा रहता था
हल्का सा गिर जाता तो वो आंचल मे भर लेती थी
उसकी आंखों से आंसू की अविरल धारा बहती थी
जिसमे दुनिया के सब दुख बस क्षण भर मे बह जाते थे
उसके बहते आंसू मेरे कानो मे कह जाते थे
जब तक जिंदा हूँ तुझ पर कुछ कष्ट नहीं आने दूंगी
तेरे बदले मै अपने जीवन की बली चढ़ा दूंगी
मेरे कष्टों को ढ़ोने वाली मेरी माँ कहाँ गयी
मेरे सिर पर ममता का आंचल मेरी माँ कहाँ गयी
उसका रस्ता देख देखकर आंखें भी पथरायी हैं
माँ-माँ कहते कहते मेरी वांणी भी अकुलायी है
एक बार मिल जाये तो इस बार नहीं जानें दूंगा
भगवान को भी अपनी माँ के नजदीक नहीं आने दूंगा
Wonderfull mam
The poem is really commendable